दोस्तों! आज मैं आपके लिए लेकर आया हूँ कुछ बेहद ही रोचक और शिक्षाप्रद कहानियाँ जो आपको काफी पसंद आएगी और जिनसे आपको कुछ न कुछ सीखने को भी मिलेगा।
तो आईये चलते है कहानियों के सफ़र पे और पढ़ते है – रोचक और शिक्षाप्रद कहानियाँ हिंदी में।
रोचक और शिक्षाप्रद कहानियाँ हिंदी में
-: कर्मों का फल :-
एक जंगल में एक शेर का परिवार रहता था। परिवार में शेर, शेरनी और उनका बच्चा था। पूरा परिवार बड़े आराम से जंगल में रहता था और जंगल में राज करता था।
एक दिन वो तीनो जंगल में घूमने निकले, रास्ते में उन्हें एक मादा भेड़िया मरी हुई पड़ी मिली। शायद किसी ने अभी अभी उसका शिकार किया हो, और उसके साथ एक छोटा सा बच्चा भी था जो अभी मुश्किल से एक दो माह का था।
बच्चा अपनी मरी हुई माँ का दूध पी रहा था। ये दृश्य देखकर शेरनी को उस भेड़िये के बच्चे पर बहुत दया आयी और शेर से बोली कि ये बच्चा इतना छोटा हैं और इसकी माँ भी मर चुकी है।
ये इस जंगल में कैसे बच पायेगा, कोई ना कोई शिकारी इसे मार देगा या फिर ये खुद भूख से ही मर जायेगा। अगर आप बुरा ना माने तो क्या हम इस बच्चे को साथ ले जा सकते हैं?
ये सुनकर शेर थोड़ा उलझन में पड़ गया और बोला कि हम शेर हैं और ये भेड़िया, इसे हम कैसे साथ ले जा सकते हैं? जंगल के लोग क्या कहेंगे?
शेर का जवाब सुनकर शेरनी बोली, आप तो जंगल के राजा हैं, आप का काम प्रजा की देखभाल करना है और फिर ये तो मासूम सा बच्चा है।
एक काम करते हैं, अभी इसे साथ ले चलते हैं, जब ये थोड़ा बड़ा हो जायेगा तो ये खुद अपने झुण्ड में चला जायेगा।
ये सुनकर शेर ने शेरनी की बात मान ली और उस भेड़िये के बच्चे को लेकर अपने घर चल दिए।
भेड़िये का बच्चा अब शेर परिवार के साथ रहने लगा। वो शेर के बच्चे के साथ खेलता और शेर शेरनी भी उसे अपने बच्चे के जैसे प्यार करने लगे।
शेरनी दोनों बच्चो को साथ दूध पिलाती, और दोनों को अपने बच्चे को तरह प्यार करने लगी। काफी समय बीत गया, बच्चे भी अब थोड़े बड़े हो गए।
दोनों साथ साथ शेर से शिकार करना सीखने लगे, शेर भी दोनों को शिकार करने के नए नए पेंतरे सीखने लगा। दोनों बच्चों में एक ही अंतर था, शेर का बच्चा दहाड़ मारता था और भेड़िये का बच्चा हू हू करता था।
जब बच्चे और भी बड़े हो गए तो एक दिन शेर ने शेरनी से कहा, कि चलो अब इस बच्चे को भेड़िये के झुण्ड में छोड़ आते हैं, अब ये बड़ा हो गया है।
लेकिन शेरनी को अब बच्चे से बहुत प्यार हो गया था, वो उसे अपने बच्चे की तरह प्यार करने लगी थी। शेरनी ने शेर की बातों से असहमतता जताते हुए कहा, नहीं अब ये हमारा ही बेटा है।
अब ये हमारे साथ ही रहेगा। शेर ने भी शेरनी की बात को मान लिया।
काफी समय गुजर गया। पूरा परिवार बड़े आराम से अपना समय बिता रहा रहा था। एक दिन चारो जंगल में घूमने निकले, वहां रास्ते में किसी शिकारी ने जाल बिछा रखा था।
किसी को वो जाल नहीं दिखा और चारो उस जाल में फस गए। चारों ने खूब कोशिश की निकलने की लेकिन कामयाब नहीं हो पाए, वो जितना कोशिश करते उतना ही ज्यादा फंसते जाते।
शेर और शेर का बच्चा मदद के लिए दहाड़ने लगे लेकिन जैसा हम सब जानते हैं शेर की दहाड़ से जंगल के जानवर डर से और दूर भाग जाते हैं।
उन्होंने खूब कोशिश की लेकिन कोई उनकी मदद के लिए नहीं आया। फिर भेड़िये ने कहा पिताजी मैं कोशिश करता हूँ, शायद कोई मदद मिल जाये।
शेर ने सोचा की जब मेरी दहाड़ जानवरों तक नहीं पहुंची तो इसकी आवाज़ कैसे पहुंचेगी। लेकिन डूबते हुए को तिनके का सहारा बहुत है, तो शेर ने भी हाँ कर दी।
अब भेड़िये ने बहुत तेज़ हू हू करना शुरू किया, उसकी आवाज़ किसी आस पास भेड़ियों के झुण्ड तक पहुंच गयी।
अपनी आदतनुसार भेड़ियों का झुण्ड भी हू हू करने लगा, और जिधर से आवाज़ आ रही थी उस ओर चलने लगा।
वहां पहुंच कर झुण्ड ने देखा की जाल में शेर शेरनी उनका बच्चा और एक भेड़िये का बच्चा फंसा हुआ है। झुण्ड को पहले तो बहुत आश्चर्य हुआ कि ये भेड़िया शेर परिवार के साथ कैसे फंसा हुआ है।
जब बच्चे ने अपनी कहानी सुनाई तो भेड़ियों के झुण्ड ने शेर का धन्यवाद किया और सबने मिल के उस जाल को काट दिया। अब वो चारो जाल से मुक्त हो गए।
अब जब झुण्ड जाने लगा तो शेर ने भेड़िये के बच्चे से पूछा कि तुम किसके साथ जाना चाहोगे। तो बच्चे ने जवाब दिया आपने मुझे बचाया, मुझे पला पोसा लेकिन मेरी असली जगह इन्ही लोगों के साथ है, इसलिए अगर आपकी आज्ञा हो तो क्या मैं झुंड के साथ जा सकता हूँ।
ये सुनकर शेर ने जवाब दिया, कि अब तुम बड़े हो गए हो, अपना फैसला ले सकते हो। शेरनी ने भी भीगी आँखों से बच्चे से कहा कि तुम ख़ुशी से अपने झुण्ड के साथ जाओ, लेकिन अगर कभी भी तुम्हें हमारी जरूरत पड़े तो हमे एक आवाज़ दे देना, हम आ जायेंगे।
ऐसा बोलकर शेर शेरनी ने बच्चे को वहां से विदा कर दिया और खुद अपनी गुफा की तरफ चल पड़े।
कहानी से सीख: इस कहानी से हमे ये सीख मिलती है कि हमारे कर्मों के फल हमे जरूर मिलते है। अगर हम अच्छे कर्म करते हैं तो उसका परिणाम आज नहीं तो कल हमरे सामने जरूर आएगा। यही शेर शेरनी के साथ हुआ, उन्होंने निस्वार्थ उस भेड़िये के बच्चे की सहायता की और परिणामस्वरूप उसी भेड़िये के बच्चे की वजह से आज उनकी जान बच गयी।
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-: कुएं का मेंढक :-
एक समय की बात ही। एक बहुत बड़े सागर में बहुत से मेंढक रहते थे। उनमें से एक दिन एक मेंढक ने सोचा – “यार!! क्या यही जिंदगी है हमारी !! क्या इसी सागर में रहते हुए ही हमारी जिंदगी निकल जाएगी, क्या इसके बाहर भी कोई दुनिया है!! अगर हैं तो वो कैसी होगी?”
एक दिन उसने अपने दोस्तों से कहा -” देखो भाई मैं सोच रहा हूँ कि इस समुद्र के बाहर जाकर नयी दुनिया देखू। क्या तुममें से कोई मेरे साथ आना चाहेगा?”
उनमें से कुछ मेंढक साथ चलने को राज़ी हो गए लेकिन कुछ ही दूर चलने के बाद वो थक गए और उन्होंने आगे जाने से इंकार कर दिया।
अब वो मेंढ़क अकेला ही आगे जाने का फैसला करता है। चलते चलते काफी अँधेरा हो गया और अँधेरे की वजह से वो एक बड़े से कुँए में जा गिरा जहां पहले से ही कई सारे मेंढ़क रहते थे।
जब सुबह हुई तो उसने देखा कि कुए के सभी मेंढक टकटकी लगाकर उसकी और देखे जा रहे हैं।
तभी कुए का एक मेंढ़क उस मेंढ़क से बोला – “कौन हो तुम और कहा से आये हो यहाँ?”
तो समुद्र के मेंढ़क ने कहा कि वो एक बड़े से समुद्र में रहता है और यहाँ वो दुनियां घूमने निकला है लेकिन अँधेरे के कारण वो इस कुए में गिर गया हैं।
उसकी ये बात सुनकर सभी को काफी आश्चर्य हुआ। फिर कुए का एक मेंढ़क कहने लगा कि तुम्हारा समुद्र कितना बड़ा है?
तो समुद्र के मेंढ़क ने कहा कि समुद्र तो काफी बड़ा होता है। अब मैं तुम्हे ये कैसे बताऊ।
“क्या वो इतना बड़ा होगा”? (एक मेंढ़क ने अपने दोनों हाथ फैलाकर कहा।)
नहीं, नहीं वो बहुत बड़ा है इससे।
फिर एक सबसे बड़े मेंढ़क ने अपने दोनों हाथ फैलाकर कहा – “तो क्या समुद्र इससे भी बड़ा है?”
समुद्र का मेंढ़क अब उनकी बातों पर हसने लगा और बोला – “अरे भाई अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊ कि समुद्र कितना बड़ा होता है।”
हां हां….. फिर भी उसका कोई न कोई आकर तो होगा ही- (फिर कुछ मेंढ़क एक साथ बोले)
अब कुए के सभी मेंढ़क एक दूसरे का हाथ पकड़कर कुए के एक छोर से दूसरे छोर तक फैल जाते है और फिर सबने मिलकर कहा कि क्या समुद्र इससे भी बड़ा होता हैं क्यूंकि अब इससे बड़ा तो कुछ भी नहीं हो सकता।
समुद्र का मेंढ़क अब समझ चुका था कि उन्हें समझाना नामुमकिन है, क्यूंकि इनकी दुनिया बस यही तक सिमित है।
फिर कुंए के मेंढ़क ने भी हां में सिर हिलाया और चुप रहना ही बेहतर समझा।
कहानी से सीख – एक तुच्छ विचारधारा का व्यक्ति अपने आपको सबसे बुद्धिमान ही समझता है। इसलिए ऐसे लोगो से बहस करना कोई समझदारी का काम नहीं हैं।
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-: मकड़ी का जाला :-
एक घर में एक मकड़ी अपना जाला बनाने के लिए जगह तलाश रही थी। बहुत ढूंढ़ने के बाद उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और वहां जाला बनाना शुरू किया।
कुछ देर बाद उसने देखा कि वहां खड़ी एक बिल्ली उसकी तरफ देखकर हंस रही थी। मकड़ी ने कारण पूछा तो बिल्ली ने कहा कि यह जगह तो साफ-सुथरी हैं, यहां मक्खियां नहीं हैं। यहां तुम्हारे जाले में कौन फंसेगा।
मकड़ी को बिल्ली की बात सही लगी और वह आधे बने जाले को छोड़कर दूसरी जगह ढूंढ़ने लगी। अब उसे खिड़की के पास की जगह सही लगी और वह वहां जाला बनाने लगी।
तभी वहां एक चिड़िया आई और मकड़ी से बोली कि यहां तो खिड़की से तेज हवा आती हैं, यहां तो जाला और तुम दोनों उड़ जाओगे।
मकड़ी को चिड़िया की बात सही लगी और वह फिर जाला अधूरा छोड़ नई जगह तलाशने लगी। इस सबमें बहुत देर हो गई थी और मकड़ी को भूख भी लगी थी।
अब उसमें जाला बनाने की हिम्मत नहीं थी और वह अधमरी हालत में एक कोने में बैठी थी। उसे पछतावा हो रहा था कि दूसरों की बातों में आकर उसने अपना काम अधूरा छोड़ दिया वरना इस वक्त वह आराम से अपने जाले में बैठी होती।
शिक्षा मंत्र : दूसरों की बातों में आकर अपना काम अधूरा छोड़ना सही नहीं हैं।
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-: सुकून-शांति :-
बात बहुत पुरानी हैं। एक बार विश्वविजय पर निकला सिकंदर यूनान से भारत तक आ पहुंचा था। वह एक जंगल से आगे बढ़ रहा था। तभी एक साधु शिला पर लेटे हुए मिले।
सिकंदर को देखकर भी वः ज्यों के त्यों लेटे रहे। सिकंदर ने अहंकार और गुस्से में कहां, ‘क्या आपको मालूम हैं कि आपके सामने विश्वविजेता खड़ा हैं?’
साधु ने उपेक्षापूर्ण व्यवहार दिखाते हुए कहा, ‘तुम खून खराबा क्यों करते हो?’ सिकंदर ने कहा, ‘इससे मैं पूरी दुनियां को जीत लूंगा और उसपे राज करूँगा।’
साधु ने फिर कहा, ‘फिर’?
सिकंदर बोला, ‘मेरे पार महल, गहने, संपत्ति, नौकर- चाकर और विराट सत्ता और विशाल साम्राज्य होगा।
साधु बोले, ‘फिर’?
सिकंदर बोले, ‘ये करने के बाद मैं सुकून के साथ रहूँगा।’
साधु बोले, ‘तुम इतना सब करने के बाद आराम से रहोगे। मैं तो वैसे ही आराम से रह रहा हूँ। ‘साधु ने लेटे लेटे ही उत्तर दिया और दूसरी करवट लेकर सो गया।
तब सिकंदर को पहली बार आभास कि वः एक मूर्खतापूर्ण अभियान पर निकला हैं। उस दिन उसने अपना अभियान सदा के लिए स्थगित कर दिया।
वह समझ चूका था कि सुकून और शांति पाने का रास्ता हिंसा कतई नहीं था।
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-: बुरी आदतों का दमन :-
एक बार स्वामी रामकृष्ण से एक साधक से पुछा, ‘ मैं हमेशा भगवान का नाम लेता रहता हूँ फिर भी मेरे मन में कुविचार क्यों उठते हैं।
उन्होंने साधक को समझाने के लिए एक किस्सा सुनाया। एक आदमी के पास पालतू कुत्ता था। वह उसे गोद में लेता, यहां तक कि खाते पीते, सोते-जागते या बाहर जाते समय भी कुत्ता उसके साथ ही रहता था।
उसकी इस हरकत को देखकर एक मुजुर्ग ने उससे कहा कि एक कुत्ते से लगाव ठीक नहीं। क्या पता कब किसी दिन कोई अनहोनी न कर बैठे।
यह बात उस आदमी में घर कर गई। उसने तुरंत कुत्ते से दूर रहने की ठान ली। लेकिन कुत्ता इस बात को भला कैसे समझे?’ वह तो मालिक को देखते ही दौड़कर उसकी गोद में आ जाता था।
बहुत दिनों की मेहनत उसकी यह आदत छूटी। स्वामीजी ने साधक से कहा, ‘तुम भी वास्तव में ऐसे ही हो। जिन सांसारिक भोग-विलास में आसक्ति की आदतों को तुमने इतने लम्बे समय से पालकर छाती से लगा रखा हैं, वे भला तुम्हें आसानी से कैसे छोड़ सकती हैं।
शिक्षामंत्र: बुरी आदतों का दमन करोगे तो ही मन की एकाग्रता बढ़ेगी और चित्त में शांति आती चली जाएगी।
At Last :
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