जब भी किस्से कहानियों की बात होती है तो अकबर और बीरबल के किस्से कहानियों का ज़िक्र कही न कही हो ही जाता है क्यूंकि Akbar Birbal Ki Kahaniya पुराने ज़माने से ही काफी प्रचलित रही है और इन्हे सुनने-सुनाने में बहुत ही मज़ा आता है और और साथ ही इनसे हमे बहुत-कुछ सीखने को भी मिलता है।
इसलिए आज मैं आपके लिए कुछ ऐसी ही मजेदार कहानियाँ (Akbar Birbal Ki Kahaniya) akbar birbal ki story लेकर आया हूँ और ये कहानियाँ पढ़कर आपको मजा तो आएगा ही साथ ही इनसे आपको कुछ प्रेरणा भी मिलेगी।
तो आईये अब चलते है किस्से – कहानियों के संसार में और पढ़ते है Akbar Birbal Ki Kahaniya in Hindi
अकबर और बीरबल की मजेदार कहानियाँ
1 -महेश दास कैसे बना बीरबल?
बादशाह अकबर को शिकार करने का बहुत शौक था। एक बार वो अपने सैनिकों के साथ शिकार करने के लिए जंगल में गए और चलते चलते वो इतनी दूर निकल गए कि जंगल में रास्ता ही भटक गए। और वो सही रास्ते की तलाश में इधर-उधर भटकने लगे लेकिन उन्हें कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था।
और इसी तरह कई घंटों तक जंगल में इधर उधर भटकने के बाद वह एक जंगल में एक ऐसी जगह पहुंचे जहां पर तीन रास्ते आकर मिलते हैं अर्थात 3 दिशाओं में रास्ते जाते थे।
यह देख कर बादशाह अकबर सोच में पड़ गए और वह सोचने लगे कि सही रास्ता कौन सा है और उन्होंने अपने सैनिकों से कहा की “आगरा के लिए इनमें से कौन सा रास्ता चुनना चाहिए” लेकिन अब यह सैनिकों के भी समझ में नहीं आ रहा था क्योंकि वह तीनों रास्ते एक जैसे ही दिखाई दे रहे थे।
तभी उन्हें एक युवक उधर आता हुआ दिखाई दिया और सैनिकों ने उसे अपने पास बुलाया तो अकबर ने उस युवक से पूछा कि, “बताओ इनमें से कौन सा रास्ता आगरा को जाता है?” तभी युवक मुस्कुराते हुए कहने लगा “महाराज रास्ता भला कभी चलता है क्या फिर वह आगरा कैसे जाएगा”?
उसकी बात सुनकर सैनिक भी भौचक्के रह गए। उन्होंने सोचा बादशाह अकबर के सामने इस युवक ने ऐसा जवाब क्यों दिया और उसकी हिम्मत कैसे हुई और अब वो सब बादशाह की तरफ देखने लगे।
तभी युवक की बात सुनकर बादशाह अकबर जोर से हंस पड़े और कहने लगे “शाबाश युवक बड़े हाजिर जवाब हो तुम और काफी समझदार भी। मान गए तुम्हारी बात में दम है, अच्छा….!! तुम्हारा नाम क्या है?”
जी युवक बोला “महेश दास और आप कौन हैं और आपका क्या नाम है ?” तो अकबर ने कहा- “मैं अकबर हूँ, हिंदुस्तान का बादशाह, मैं तुम्हारी बुद्धिमानी से बहुत प्रसन्न हूं और मुझे अपने दरबार में तुम्हारे जैसे बुद्धिमान इंसान चाहिए। अतः ये लो मेरी अँगूठी इसे लेकर तुम मेरे दरबार में आना ताकि वहां मैं तुम्हे पहचान सकू।
इसके बाद अकबर ने युवक से कहा की “अब आगरा जाने का सही रास्ता बताओ” तो युवक ने तुरंत सही रास्ता बताया और बादशाह अकबर का अभिवादन करके अपने घर की ओर चल पड़ा और घर आने के बाद अब वो बादशाह से मिलने की तैयारी करने लगा।
कुछ दिनों बाद महेश दास अकबर से मिलने के लिए आगरा जा पहुँचा। जब वो राजमहल में पहुँचा तो वहा के द्वारपाल ने उसके मैले कुचेले वस्त्र और दीन हीन हालत देखकर उसे द्वार पर ही रोक लिया और अंदर प्रवेश नहीं करने दिया।
इस पर जब महेश दास ने अपनी पूरी बात द्वारपाल को बताई तो उन्होंने समझा कि वो युवक राजा से इनाम लेने के लिए आया है तो द्वारपाल ने कहा कि वो उसे एक ही शर्त पर अंदर जाने दे सकता है यदि वो राजा से मिले इनाम में से आधा हिस्सा उसे दे तो।
इस पर महेश दास ने द्वारपाल की बात मानकर चुपचाप अंदर प्रवेश कर लिया और जब राजा के सामने पहुंचा तो अभिवादन करके अपना परिचय दिया और साथ ही उसने जंगल में राजा से हुई मुलाकात का भी जिक्र किया।
युवक की ये बात सुनकर अकबर को उस दिन की याद ताजा हो आयी। बादशाह अकबर उस युवक पर एक बार फिर प्रसन्न होकर कहने लगे -“युवक मैं तुम्हारी उस मुलाकात से काफी प्रसन्न हूँ, अतः मैं तुम्हे इनाम देना चाहता हूँ। अब बताओ तुम्हे क्या चाहिए इनाम में ?”
तो युवक ने कहा -“महाराज मुझे इनाम में 50 कोड़े चाहिए। यह सुनकर राजा के साथ सभा में मौजूद सभी सदस्य हतप्रभ रह गए कि इसने ये क्या मांग लिया !!
तभी दरबारियों में से किसी एक ने कहा -“अरे युवक ये तुमने क्या मांग लिया इनाम में, अरे तुम हिन्दुस्तान के बादशाह अकबर के दरबार में आये हो, यहाँ तुम्हारी हर मांग पूरी होगी, तुम हीरे-जवाहरात कुछ भी मांग सकते हो। “
तभी अकबर ने कहा – “ये तुमने क्या अजीबोगरीब इनाम माँगा है, ज़रा बताओगे इसके पीछे की असली वजह क्या है ?”
तो युवक ने द्वारपाल की वो सारी बात बादशाह को बता दी। इस पर अकबर बेहद गुस्सा होकर बोलै, उस द्वारपाल को तुरंत हाजिर किया जाये यहाँ। इसके बाद बादशाह ने उस द्वारपाल को 50 की बजाय 100 कोड़े मारने का आदेश दिया।
युवक की इस समझदारी ने एक बार फिर बादशाह अकबर को खुश कर दिया और वो कहने लगे – महेशदास आज मैं एक बार फिर तुम्हारी बुद्धिमानी से काफी प्रसन्न हूँ। इसलिए आज मैं तुम्हे अपना दरबारी घोषित करता हूँ और आज से तुम बीरबल के नाम से जाने जाओगे।
सभा में मौजूद कुछ दरबारियों को बादशाह की ये बात रास नहीं आयी और वो नहीं चाहते थे कि महेशदास जैसा कोई भी व्यक्ति सभापति चुना जाये। इसलिए उनमे से किसी एक ने चालाकी से बादशाह से कहा।
“जहापनाह आपकी बात का मैं बिलकुल खंडन नहीं करना चाहता परन्तु आपने ये निर्णय थोड़ी जल्दीबाजी में लिया है। अतः मैं समझता हूँ कि इस युवक की थोड़ी बहुत परीक्षा और ली जाये ताकि ये बात पक्की हो सके कि वास्तव में ये दरबारी बनने लायक है या नहीं।”
इस पर बादशाह ने कहा ठीक है अगर आपको लगता है तो आप ही स्वयं इसकी परीक्षा क्यों नहीं ले लेते? आप प्रश्न पूछिए जो भी आप इससे पूछना चाहते है और फिर देखते है की क्या महेशदास को वास्तव में दरबारी बनाना चाहिए या नहीं।
इसके बाद पूरे दरबार में एक दम ख़ामोशी छा गयी, और सब उत्सुकता से ये जानने को बेताब थे कि अब आगे क्या होगा।
अब वो दरबारी कुछ देर ऐसे ही खड़ा रहा और कुछ देर सोचने के बाद उसने युवक से पूछा- “बताओ इस वक्त मैं क्या सोच रहा हूँ अपने मन में?”
पूरी सभा में एक बार फिर वही ख़ामोशी…..
तभी कुछ देर सोचने के बाद युवक ने कहा – ” मेरे ख्याल से आप ये सोच रहे है कि हमारे बादशाह जैसा इस दुनिया में कोई दूसरा नहीं है, इसलिए मेरे खुदा आप हमारे बादशाह हुजूर को सही सलामत रखे और उन्हें लम्बी उम्र दे। “
अब यह देखकर अकबर मंद मंद मुस्कुराने लगे और उत्सुकता से उस दरबारी से पुछा कि क्या आप सच में ऐसा ही सोच रहे थे? अब उस दरबारी के पास हां बोलने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था क्यूंकि ना बोलकर वो बादशाह के गुस्से का शिकार नहीं होना चाहता था।
इसलिए अब उसने सबके सामने ये कुबूल कर लिया कि वो युवक (महेशदास) बिलकुल सही कह रहा है और सच में मैं यही सोच रहा था।
युवक की इस चतुराई ने एक बार फिर राजा को प्रस्सनता हुई और अब उन्होंने एक बार फिर सबके सामने महेशदास को नया सभापति घोषित कर दिया और अब वो युवक बीरबल बनकर बादशाह अकबर की सेवा में लग गया।
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2 – स्वर्ण मुद्रा
एक समय की बात है बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे हुए थे और वो किसी बात को लेकर गहन चिंता में खोये हुए थे और उसका उन्हें कोई हल नहीं मिल रहा था।
उसी समय उन्होंने बीरबल से पुछा कि बीरबल, अगर तुम्हें न्याय और स्वर्ण-मुद्रा में से किसी एक का चयन करने को कहा जाये तो तुम किसको चुनोगे।
बादशाह अकबर की यह बात सुनकर बीरबल ने तुरंत जवाब दिया कि महाराज मैं इनमे से स्वर्ण-मुद्रा का ही चयन करूँगा।
बीरबल का ऐसा जवाब सुनकर अकबर को बेहद निराशा हुई और सभा में मौजूद दरबारियों को भी आश्चर्य हुआ क्यूंकि किसी ने भी बीरबल से ऐसे उत्तर की कल्पना नहीं की थी।
उस दरबार में कुछ सदस्य बीरबल से ईर्ष्या भी करते थे। इसलिए उन्होंने सोचा कि बीरबल के इस जवाब से बादशाह बेहद नाराज होंगे और अब तो बीरबल की ख़ैर नहीं और ऐसा सोचकर वे मन ही मन बड़े खुश हो रहे थे।
अब सभी को बादशाह के जवाब का इंतज़ार था कि अब आगे क्या होगा। इस प्रकार पूरे दरबार में एकदम सन्नाटा छा गया और सब लोग बादशाह की और उत्सुकता से देखने लगे।
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उधर बादशाह, बीरबल के इस जवाब से सोच में पड़ गया और कहा कि बीरबल तुम्हारे इस जवाब से मुझे काफी निराशा हुई है। तुमने न्याय की बजाय स्वर्ण-मुद्रा का चयन किया है और इस बात से मैं अपने आप को शर्मशार महसूस कर रहा हूँ।
बीरबल मैंने हमेशा तुम्हें अपने दरबार का एक अनमोल हीरा समझा है परन्तु तुम्हारी इस बात से मुझे काफी सदमा पहुंचा है। मुझे तुमसे इस जवाब की बिलकुल भी आशा नहीं थी।
बादशाह की बात का जवाब देते हुए बीरबल ने कहा कि महाराज मैंने वही माँगा है जो मेरे पास नहीं है। रही बात न्याय की तो महाराज आपके रहते हुए इस पूरे राज्य में न्याय का ही बोलबाला है और यहाँ मुझे भी न्याय आसानी से प्राप्त है।
इसलिए आपके रहते न्याय की तो कोई कमी ही नहीं है। अब वास्तव में मेरे पास धन की कमी है तो मैंने स्वर्ण-मुद्रा को ही चुना।
बीरबल के इस बुद्धिसंगत जवाब पर अकबर मुस्करा उठे और कहने लगे -“बीरबल तुमने तो मेरा आज मेरा दिल ही जीत लिया, ऐसा जवाब केवल तुम ही दे सकते तो और कोई नहीं। अतः मुझे तुम पर नाज़ है। इसलिए हम तुम्हे ये एक हजार स्वर्ण मुद्राएं इनाम में देते है। लो इसे स्वीकार करो।
उधर बीरबल के इस जवाब ने ईर्ष्यालु दरबारियों के सपने को चूर चूर कर कर दिया और सभी न चाहते हुए भी सभी बीरबल की प्रशंशा करने लगे।
अंत में,
तो दोस्तों अकबर और बीरबल की मजेदार कहानियाँ आपको कैसी लगी और इन कहानियों के बारे में आपके विचार है हमे कमेंट करके जरूर बताये।
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