हाथी और दर्जी (Hathi Aur Darji Ki Kahani)

एक गांव में रमेश नाम के एक दर्जी की दुकान थी। उस दुकान पे अक्सर एक हाथी आया करता था और दर्जी उस हाथी को हमेशा कुछ न कुछ खाने को दिया करता था। धीरे धीरे हाथी और दर्जी दोनों में अच्छी दोस्ती हो गयी।

एक दिन रमेश अपने बेटे को दुकान पे बैठाकर दर्जी कहीं और चला गया। ठीक उसी दिन हाथी भी दर्जी की दुकान पर जा पहुंचा।

हर बार की तरह हाथी ने खाने के लिए अपनी लम्बी सूंड को दुकान की ओर बढ़ाया तो इस बात से दर्जी का बेटा नाराज हो गया। और उसने हाथी को खाने को तो कुछ नहीं दिया बल्कि उसकी सूंड में सुई चुभो दी।

दर्द के मारे हाथी जोर से चिल्लाया और चुपचाप वहां से चला गया। अब वो सीधा गंदे पानी से भरे तालाब की ओर गया और वहां से उसने ढेर सारा गन्दा पानी अपनी सूंड में भर कर वापस दर्जी की दुकान पे गया।

वहां पहुँचते ही हाथी ने अपनी सूंड का सारा गन्दा पानी दर्जी की दुकान ने उड़ेल दिया जिससे दुकान के सारे कपड़े गंदे और खराब हो गए।

दर्जी का बेटा अब कुछ नहीं कर सकता था उसे अपने किये का फल मिल चुका था।

इस कहानी से शिक्षा :

“जैसी करनी वैसी भरनी “

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By Rakesh Verma

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