आपने Global Warming के बारे में तो सुना ही होगा। इसके बारे में अक्सर TV और Newspaper में खबरें भी आती रहती है जैसे – ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु परिवर्तन हो रहे हैं, और दुनियाभर में इसके गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं आदि। तो वास्तव में ये Global Warming क्या है?

इस लेख में ग्लोबल वार्मिंग के बारे में काफी विस्तार से जानकारी दी गयी है कि ग्लोबल वार्मिंग क्या है, इसके क्या कारण है और ग्लोबल वार्मिंग से बचाव के उपाय क्या है? तो आईये ग्रीन हाउस प्रभाव तथा ग्लोबल वार्मिंग को विस्तार से समझते हैं।  

ग्लोबल वार्मिंग क्या है?

अगर इसे आसान शब्दो में समझे तो इस प्रकार है:

पृथ्वी की सतह पर औसत तापमान लगभग 16 डिग्री सेल्सिस माना गया है जो की पृथ्वी पर जीवन लिए सर्वोत्तम माना गया है। इसी औसत तापमान में वृद्धि होने को Global Warming कहते है।

इसके कारण पर्यावरण में भारी बदलाव देखने को मिल रहा है जिनमे प्रमुखतः जलवायु परिवर्तन, बारिश के तरीको में बदलाव, हिमखंडो और ग्लेशियर का पिघलना, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि, जीव जन्तुओ और वनस्पति पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव है। Global warming सम्पूर्ण जीव जगत के लिए खतरा है।  

जैसा कि हम सब जानते है कि प्राकृतिक रूप से हमारी पृथ्वी के चारो और वायुमंडल की एक मोटी परत है जो कई प्रकार की गैसों से बनी हुई है और पृथ्वी के वायुमंडल में कुछ Green House गैसे विशेष आवरण के रूप में होती है। 

जब सौर किरणें इसी परत से होकर हमारी पृथ्वी तक पहुँचती है तो उनमे से कुछ किरणें वापस अंतरिक्ष की और परावर्तित हो जाती है और बाकि पृथ्वी के वातावरण में मिलकर उसको जीवन के लायक गर्म बनाये रखती है। 

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ग्रीन हाउस प्रभाव तथा ग्लोबल वार्मिंग क्या है?

लेकिन जब इन ग्रीन हाउस गैसों में बढ़ोत्तरी होती है तो इससे ये वातावरण ज्यादा सघन हो जाता है जिससे सूर्य की परावर्तित किरणे बाहर नहीं निकल पाती है।

इसके कारण ही पृथ्वी का औसत तापमान भी बढ़ने लगता है इसे ही हम सब Global Warming कहते है। 

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ग्लोबल वार्मिंग का कारण:

ग्लोबल वार्मिंग होने के पीछे कई कारक जिम्मेदार होते है जिनमे कुछ प्राकृतिक कारक और कुछ मानव जनित कारक होते है। जैसे :-

1 – ग्रीन हाउस गैसे:

जलवाष्प : जलवाष्प भी एक प्रकार की ग्रीन हाउस गैस है क्यूंकि गर्मी पाकर जल, वाष्प में बदल जाता है तो ये जलवाष्प वातावरण को और भी ज्यादा गर्म करने लगती है। इससे और भी ज्यादा पानी वाष्प में बदलने लगता है।

इस प्रकार ये प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। ग्लोबल वार्मिंग के रूप में जलवाष्प का योगदान अकेले Carbon Dioxide से भी ज्यादा माना गया है। 

Carbon Dioxide (CO2): वैसे वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस की उपस्थिति प्राकृतिक रूप से पहले से ही है परन्तु कुछ प्राकृतिक और मानवीय कारक है।

जिनके कारण वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड गैस की मात्रा बढ़ने लगती है जिनमे मुख्यतः जंगलो में आग का लगना, कल कारखानों एवं वाहनों द्वारा कार्बन डाई ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन, ज्वालामुखी उद्गार आदि है।

Cloro Floro Carbon (CFC): क्लोरो फ्लोरो कार्बोन एक कार्बोनिक योगिक है जो कि Carbon, Chlorine, Fluorine (फ़्लोरिन) और Hydrogen के अणुओ से मिलकर बनता है।

CFC का उपयोग Refrigrator में व्यापक रूप से होता है जो की Ozone परत के लिए बेहद घातक है। इसके कारन ओज़ोन परत में क्षरण तीव्रता से होता है।

हालाँकि मांट्रियल प्रोटोकॉल के तहत अब इसके यौगिकों का निर्माण लगभग बंद कर दिया गया है और अब इसके स्थान पर HFC (Hydro Chloro Fluoro) का उपयोग किया जाने लगा है।  

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2- सौर परिवर्तन:

अभी तक Global Warming के मामले में Sollar forcing पर कम ही आकलन किया गया है। हांलाकि Duke University के दो शोधकर्ताओं द्वारा ये अनुमान लगाया गया है कि सूर्ये ने 1900 – 2000 तक शायद 45 – 50 प्रतिशत तक तापमान बढ़ाने में योगदान दिया है और 1980 से 2000 के बीच तापमान में 25- 35 तक बढ़ोत्तरी हुई है। 

3- अन्य कारक :

कुछ शोधकर्ता ये भी मानते है कि तापमान में वृद्धि होने पर ध्रुवो में जमी बर्फ बहुत तेजी से पिघलती है और इस कारण जलमग्न भूमि बाहर आ जाती है।

गौरतलब है कि भूमि और जल दोनों ही बर्फ की तुलना में सौर विकिरण को ज्यादा सोंखते है जिसके कारण गर्मी बढ़ती जाती है और इस प्रकार ये क्रम लगातार चलता ही रहता है।    

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ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव:

ग्लोबल वार्मिंग के कारण औसत तापमान में वृद्धि हो जाती है जिसकी वजह से पर्यावरण चक्र में व्यापक बदलाव होते है जो कि सम्पूर्ण जीव जगत के लिए खतरनाक भी है।

हालाँकि पिछली शताब्दी में औद्योगिक क्रांति से ही ग्रीन हाउस गैसों में तीव्र वृद्धि देखने को मिली है। पिछले 100 सालो के दौरान समुद्र के जलस्तर में वृद्धि हुयी है जिसके कारण दुनिया में तटीय क्षेत्रो वाले लोगो के लिए खतरा पैदा हो गया है।  

ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव अंटार्कटिका पर देखने को मिला है क्यूंकि अंटार्टिका में अब बर्फ पिघलने की दर काफी बढ़ी है। यहाँ बड़े बड़े हिमखंड तेजी से पिघलने लगे है जिससे यहाँ के Ecosystem में भी भारी बदलाव दिखने लगे है।

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ग्रीन हाउस प्रभाव तथा ग्लोबल वार्मिंग क्या है?, ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव:

ओज़ोन परत में सबसे ज्यादा क्षरण इसी क्षेत्र के ऊपर देखने को मिला है। कई जगहों पर मौसम चक्र में भी बदलाव आया है जिसके कारण किसी जगह ज्यादा बारिश तो किसी जगह सूखे जैसे हालात होने लगे है जिससे कृषि पैदावार पर काफी फर्क पड़ने लगा है। इसके अलावा कई प्रकार के रोगो में भी वृद्धि होने लगी है।  

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ग्लोबल वार्मिंग से बचाव के उपाय:

ग्लोबल वार्मिंग में कुछ मानवीय कारक भी है जिन्हे हम सब मिलकर कुछ हद तक नियंत्रित कर सकते है।

जिनमे प्रमुखतः कार्बन डाई ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन रोकना होगा, ग्रीन हाउस गैस के कारक जैसे CFC का प्रयोग पूर्णतः बंद करना होगा, जंगलो को काटने से रोकना होगा एवं ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधे लगाने होंगे ताकि कार्बन डाई ऑक्साइड में कमी आ सके।  

हम सब जितना हो सके ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधे लगाने की कोशिश करे क्यूंकि इससे ऑक्सीजन तो बढ़ेगी ही साथ ही वैश्विक तापमान में भी कमी आएगी।  

इसके अलावा हम यहाँ सभी से ये आशा करते है कि ज्यादा धुआँ छोड़ने वाले वाहनों का प्रयोग करना बंद करे इसकी जगह पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ज्यादा उपयोग करे।

At Last:

तो दोस्तों इस पोस्ट में आपने जाना कि Global Warming क्या है, इसके कारण और समाधान क्या हैं

मुझे उम्मीद है की आपको Global Warming पर दी गयी ये जानकारी पसंद आयी होगी। इसे अपने दोस्तों में जरूर शेयर करे। अगर आपके कोई सवाल या सुझाव हो तो हमे कमेंट जरूर करे। और इसी तरह की जानकारी पाने के लिए इस ब्लॉग को जरूर सब्सक्राइब करे।   धन्यवाद।

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By Rakesh Verma

Rakesh Verma is a Blogger, Affiliate Marketer and passionate about Stock Photography.

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