अपक्षय किसे कहते है, Weathering क्या है? अपक्षय कैसे होता है, अपक्षय कितने प्रकार का होता है, अपक्षय को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौनसे हैं?
इन सभी सवालों का जवाब जानने के लिए आप ये पोस्ट अंत तक जरूर पढ़े क्यूंकि इस आर्टिकल में अपक्षय (Weathering) के बारे में सबकुछ विस्तार से बताया गया है कि अपक्षय या ऋतुक्षरण क्या है? (What is Weathering in Hindi)
तो आईये अपक्षय (Weathering) के बारे में सब कुछ विस्तार से और बेहतर तरीके से समझते है।
अपक्षय या ऋतुक्षरण किसे कहते है?
Weathering यानि अपक्षय, जैसा कि नाम से पता चल रहा है कि यह एक प्रकार से भौतिक चीजों पर मौसम द्वारा होने वाला प्रभाव है।
अगर इसे हम आसान शब्दों में कहे तो इस प्रकार है- “चट्टानों के अपने ही स्थान पर भौतिक, रासायनिक एवं जैविक क्रियाओ द्वारा टूटने, फूटने की प्रक्रिया को अपक्षय या ऋतुक्षरण कहते है।“
इसे और आसान शब्दों में कहे तो जब चट्टानें समय के साथ टूट फुट कर अपने ही स्थान पर टुकड़ो के रूप में बिखरने लगती है तो उस प्रक्रिया को अपक्षय या ऋतुक्षरण कहा जाता है।
हालाँकि इस प्रक्रिया में कई कारक जिम्मेदार होते है जैसे भौतिक, रासायनिक और जैविक कारक, जिनके बारे में आगे हम और विस्तार से जानेंगे।
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अपक्षय या अनाच्छादन में क्या अंतर हैं?
अपक्षय या ऋतुक्षरण, अनाच्छादन (Denudation) प्रक्रिया का ही एक भाग है क्यूंकि अनाच्छादन में अपक्षय के साथ ही अपरदन की प्रक्रिया भी सम्मिलित होती है जिसके कारण पृथ्वी पर मौजूद कोई भी उबड़-खाबड़ भौतिक भूभाग अंततः समतल हो जाता है।
अपक्षय और अपरदन में क्या अंतर है?
अपक्षय की ये प्रक्रिया अपरदन की प्रक्रिया से अलग होती है क्यूंकि अपक्षय एक स्थैतिक प्रक्रिया है और अपरदन एक गत्यात्मक प्रक्रिया है।
साधारण शब्दों कहें तो अपक्षय के अंतर्गत चट्टानों का विखंडन और क्षरण होता हैं जिसे चट्टानें छोटे बड़े टुकड़ों में बिखर जाती हैं। इसके बाद उन टूटी हुई चट्टानों के टुकड़ों को एक स्थान दूसरे स्थान तक स्थानांतरित करने की प्रक्रिया को अपरदन कहा जाता हैं।
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अपक्षय कितने प्रकार के होते हैं?
अपक्षय या ऋतुक्षरण की प्रक्रिया को इसके कारकों के आधार पर तीन भागों में बांटा गया हैं जो निम्न प्रकार हैं –
1. भौतिक अपक्षय या यांत्रिक अपक्षय (Physical or Mechanic Weathering)
2 . रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)
3 . जैविक अपक्षय (Biological Weathering)
1. भौतिक अपक्षय किसे कहते हैं (Physical or Mechanic Weathering):
बिना किसी रासायनिक परिवर्तन के चट्टानों के टूट-फूट कर टुकड़े-टुकड़े होने की क्रिया को भौतिक या यांत्रिक ऋतुक्षरण कहा जाता है।
भौतिक अपक्षय का प्रमुख कारक ताप परिवर्तन है। इसके अन्य कारको में दाब मुक्ति, जमना- पिघलना तथा गुरुत्व आदि का भी योगदान रहता है। चट्टानें ताप परिवर्तन के कारण फैलती और सिकुड़ती है।
इस कारण चट्टानों में दरारे पड़ने लगती है और अंततः चट्टानें अपने ही स्थान पर टूटकर बिखर जाती है। इसके अलावा अधिक ऊंचाई से झूलती चट्टानें भी गुरुत्व प्रभाव के कारण टूटकर नीचे गिरने लगती है। इसे ही भौतिक अपक्षय कहते है।
भौतिक ऋतुक्षरण, मरुस्थलों में अधिक दैनिक तापांतर के कारण एवं ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में पाले (frost) के कारण होता है।
गर्म मरुस्थलों में स्वच्छ अकाश एवं वायु की शुष्कता के कारण दिन एवं रात के तापमान में काफी अंतर् पाया जाता है।
दिन के समय तेज धूप के कारण चट्टानों का ऊपरी आवरण तप्त होकर फैल जाता है किन्तु रात के समय प्रायः तापमान गिरकर हिंमाक (freezing point) तक पहुँच जाता है एवं चट्टानें सिकुड़ जाती है।
इन क्रियाओं की पुनरावृत्ति के कारण चट्टानों में दरार पड़ने लगती है एवं चट्टानें बड़े-बड़े खंडो में टूट जाती है। इस क्रिया को खंड विच्छेदन (block disintegration) कहा जाता है।
उष्ण मरुस्थलीय, अर्द्ध मरुस्थलीय एवं मानसूनी जलवायु प्रदेशों में अधिक तापांतर के कारण कभी-कभी चट्टानों की ऊपरी सतह गर्म होकर अंदर की अपेक्षाकृत ठंडी सतह से अलग हो जाती है।
इसे अपदलन, अपशल्कन या अपपत्रण (exfoliation) कहा जाता है। यह क्रिया मुख्यतः ग्रेनाइट जैसे रवेदार चट्टानों में होती है।
चट्टानें विभिन्न खनिजों का समुच्चय होती है एवं विभिन्न खनिजों के फैलाव एवं सिकुड़ने की दर अलग अलग होती है। इसके कारण चट्टानों के विभिन्न खनिज कण टूट टूटकर अपने खनिज कणो में विभाजित हो जाती हैं।
चट्टानों का इस प्रकार खनिज कणों में टूटना कणिकामय विखंडन (granular disintegration) कहलाता है। खंड विखंडन एवं कणिकामय विखंडन के कारण ही गर्म मरुस्थलों में विस्तृत क्षेत्रों में बालू पाये जाते हैं।
शीत कटिबंधीय क्षेत्रों एवं उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में चट्टानों की छिद्रों एवं दरारों में जल के जमने एवं पिघलने की क्रिया क्रमिक रूप से होती है।
इससे चट्टानें कमजोर हो जाती है एवं बड़े-बड़े खंडों में टूटने लगती है अर्थात खंड- विखंडन (block disintegration) होने लगता है। यह क्रिया तुषार क्रिया (block action) कहलाती है।
खड़ी पहाड़ी ढालों पर इस प्रकार का विघटन अधिक देखने को मिलता है। विघटित चट्टानें गुरुत्व बल के कारण नीचे की ओर सरककर जमा होने लगती है। ये विखंडित चट्टानें खुरदरी एवं नुकीली होती हैं।
इस प्रकार के कोणीय चट्टानी खंडो (angular rock fragments) के ढेर को भग्नाश्म राशि (scree) कहा जाता है। इस प्रकार स्क्री या टैलस का निर्माण मुख्यतः तुषार क्रिया एवं गुरुत्वाकर्षण का परिणाम हैं।
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2. Chemical Weathering-रासायनिक अपक्षय किसे कहते हैं
जब रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा चट्टानों का विखंडन (disintegration) होता है तो उसे रासायनिक अपक्षय कहा जाता है।
जब विभिन्न कारणों से चट्टानों के अवयवों में रासायनिक परिवर्तन होता है तो उनका बंधन ढीला हो जाता है तो रासायनिक अपक्षय की क्रिया होती है।
तापमान एवं आर्द्रता अधिक रहने पर रासायनिक अपक्षय की क्रिया तीव्र गति से होती है। यही कारण है कि विश्व के उष्ण एवं आर्द्र प्रदेशों में यह क्रिया अधिक महत्वपूर्ण होती है।
शुष्क अवस्था में ऑक्सीजन एवं कार्बन डाईऑक्साइड का चट्टानों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, परन्तु नमी की उपस्थिति में ये सक्रीय रासायनिक कारक (active chemical agent) बन जाते है। वायुमंडल के निचले स्तरों में ऑक्सीजन कार्बन डाई ऑक्साइड तथा जलवाष्प की अधिकता होती है।
वायुमंडल में जल की उपस्थिति से इनकी क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है तथा ये सक्रिय घोलक हो जाते है एवं अनेक रासायनिक क्रियाओ के द्वारा शेलो का अपक्षय का होने लगता है। ये विभिन्न क्रियाये निम्नलिखित है –
ऑक्सीकरण (Oxidation)-
वायु की ऑक्सीजन जल की उपस्थिति में खनिजों से क्रिया करती है। इस कारण खनिजों में ऑक्साइड बन जाते है जिससे चट्टानों में वियोजन होने लगता है।
जिन चट्टानों में लोहे के योगिक अधिक होते है उनमे ऑक्सीकरण का प्रभाव सर्वाधिक होता है एवं लोही के योगिक फेरस अवस्था से फैरिक अवस्था में (लाल भूरा रंग) बदल जाते है।
आग्नेय चट्टानों में लोहा, लौह सल्फाइट तथा पाइराइट के रूप में पाया जाता है अतः इन पर ऑक्सीजन अधिक सक्रीय रहती है, जिस कारण रासायनिक परिवर्तन के कारण वहाँ पर मिट्टियो का रंग लाल, पिला या भूरा हो जाता है।
पाइराइट पर जल और ऑक्सीजन की क्रिया से गंधक का अम्ल उत्पन्न होता है जो कि शैलो को गलाने में सहायक सिद्ध होता है।
ऑक्सीकरण की क्रिया विशेष रूप से लौह युक्त चट्टानों पर होती है। आर्द्रता बढ़ने पर लौह खनिज ऑक्सीजन से मिलकर ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाते हैं.
जिसके कारण चट्टान अथवा खनिज कमजोर हो जाते हैं एवं उनका विखंडन होने लगता है। वर्षा ऋतु में लोहे में जंग लगना ऑक्साइड का ही परिणाम हैं।
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कार्बोनेटीकरण (Carbonation)-
साधारण जल कैल्सियम कार्बोनेट तथा मेग्नीशियम कार्बोनेट की शैलो को नहीं घोल पाता परन्तु वायुमंडल की कार्बन डाई ऑक्साइड जल में घुलकर कार्बोनिक अम्ल बनाती है।
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इस अम्ल का प्रभाव विशेष रूप से उन चट्टानों पर पड़ता है, जिनमें कैल्शियम, मेग्नीशियम, सोडियम, पोटेशियम एवं लोहा जैसे तत्व पाए जाते हैं।
ये तत्व कार्बोनिक अम्ल में घुलकर कार्बोनेट घुलनशील बाईकार्बोनेट में बदल जाते है और इस प्रकार चुने का पत्थर, संगमरमर तथा जिप्सम आदि जल में घुल जाते है। फलस्वरूप इन खनिजों से निर्मित चट्टानें कमजोर हो जाती है एवं उनका विखंडन होने लगता है।
बलुआ पत्थरों (sand stone) में सामान्यतः कैल्शियम कार्बोनेट (lime) ही संयोजक पदार्थ का कार्य करता है, जो कार्बोनिक अम्ल में शीघ्रता से घुल जाता है, फलस्वरूप बलुआ पत्थर का विखंडन होने लगता है।
जब लोहे के सल्फाइट या पाइराइट पर कार्बन डाई ऑक्साइड से युक्त जल का प्रभाव होता है, तो उसके क्रमशः लोहे के कार्बोनेट तथा सल्फुरिक अम्ल बन जाते है। लोहे का कार्बोनेट जल में घुलनशील होने के कारण घुलकर शीघ्रता से चट्टानों से अलग हो जाते है।
कभी कभी जलयोजन के कारण चट्टानों की ऊपरी सतह फूलकर निचली सतह से अलग हो जाती है। इसे गोलाभ अपक्षय (Spheroidal Weathering) कहा जाता है। इस प्रकार रासायनिक अपक्षय की यह क्रिया अपदलन से काफी मिलती- जुलती है।
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जलयोजन (Hydration) –
जब खनिज पदार्थ जल में रासायनिक क्रिया करके नविन यौगिक का निर्माण कर लेते है तो यह क्रिया हाईड्रेशन कहलाती है। इस क्रिया द्वारा चट्टानें जल सोख लेती है तथा उनके आयतन में वृद्धि हो जाती है।
इस प्रकार चट्टानों के आयतन में विस्तार के कारण उनके कणों तथा खनिजों में तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है। जिस कारण चट्टानें फैलकर टूटने लगती है। फेल्सपार खनिज हाईड्रेशन की क्रिया द्वारा कायोलिन (Kaolin) मृतिका में बदल जाता है।
सिलिका प्रथक्करण –
बहते हुए जल द्वारा ग्रेनाइट का सिलिका कट-कट कर अलग हो जाता है। अधिक सिलिका के निकल जाने से शैल शीघ्र ही विघटित हो जाती है क्यूंकि अधिक सिलिकायुक्त चट्टानें अपक्षय की प्रतिरोधी होती है।
सिलिका जब क्वार्ट्ज़ के रूप में होता है तो बहुत कड़ा होता है। परतदार चट्टानों में यदि क्वार्ट्ज़ हो तो वह आग्नेय चट्टानों से भी कठोर हो जाती है परन्तु सिलिका के पृथक होने से यह शैले भी विघटित हो जाती है।
जल अपघटन –
इसमें जल के साथ चट्टानों की रासायनिक क्रिया से उनकी रासायनिक सरंचना में बदलाव हो जाता है।
विलयन (Solution) –
चट्टानों में उपस्थित विभिन्न खनिजों के जल में घुलने की क्रिया को विलयन कहा जाता है। उदाहरण के लिए सेंधा नमक (rock salt) एवं जिप्सम वर्षा के जल में आसानी से घुल जाते है।
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3. Biological Weathering– जैविक अपक्षय कैसे होता है?
वनस्पति या जीव-जंतु तथा मनुष्य भी चट्टानों के विघटन तथा वियोजन में सहयोग प्रदान करते है। पृथ्वी की ऊपरी सतह में मृदा में रहने वाले कीड़े-मकोड़े, बिल बनाने वाले जंतु आदि मृदा को खोद खोदकर उसे कमजोर बनाते रहते है जिससे चट्टानें कमजोर होकर विखण्डित हो जाती है।
अपक्षय पर जलवायु का प्रभाव:
- उष्ण एवं शुष्क जलवायु क्षेत्रों (जैसे – गर्म मरुस्थलों में) दैनिक तापांतर अधिक मिलने के कारण भौतिक अपक्षय महत्वपूर्ण होता है।
- उष्ण एवं आर्द्र जलवायु क्षेत्र (जैसे – विषुवतीय क्षेत्र) एवं चूना पत्थर वाले क्षेत्र में रासायनिक अपक्षय महत्वपूर्ण होता है।
- शीत एवं शीतोष्ण जलवायु क्षेत्रों में भौतिक अपक्षय अधिक महत्वपूर्ण होता है।
- ध्रुवीय क्षेत्रों में स्थायी हिमाच्छादन के कारण अपक्षय की क्रिया नहीं होती है।
- मानसूनी जलवायु वाले क्षेत्रों (जैसे भारत) में रासायनिक एवं भौतिक दोनों ही प्रकार का अपक्षय पाया जाता है।
FAQs (आप ये भी जानिए):
प्रश्न 1. अपक्षय का क्या अर्थ है?
उत्तर: जब चट्टानें अपने ही स्थान पर टूट फूट कर बिखरने लगती हैं तो इस प्रक्रिया को अपक्षय कहा जाता हैं।
प्रश्न 2. अपक्षय और अपरदन में अंतर क्या है?
उत्तर : अपक्षय एक स्थैतिक प्रक्रिया है जबकि अपरदन एक गत्यात्मक प्रक्रिया हैं।
प्रश्न 3. अपक्षय के प्रकारों का वर्णन कीजिए?
उत्तर: अपक्षय के प्रकार – भौतिक अपक्षय, रासायनिक अपक्षय, जैविक अपक्षय
प्रश्न 4. अपक्षय के क्या परिणाम है?
उत्तर : अपक्षय के परिणामस्वरूप धरातल का उबड़ खाबड़ स्वरूप अंततः समतलता को प्राप्त करता हैं एवं इससे पुनः नई स्थलाकृतियाँ बनती है।
प्रश्न 5. मनुष्य अपक्षय का महत्वपूर्ण कारक कैसे है?
उत्तर : मनुष्य भी जैविक अपक्षय में एक सबसे बड़ा कारक हैं। क्यूंकि मनुष्य प्रकति में काफी ज्यादा तोड़ फोड़ करता रहता हैं जैसे – खनन कार्य और कृषि कार्य।
प्रश्न 6. अपक्षय में इतना समय क्यों लगता है?
उत्तर : अपक्षय एक बहुत धीमी प्रक्रिया है जो हजारो लाखों वर्षों तक चलती रहती है। फिर अपक्षय पदार्थ की कठोरता पे निर्भर करता है। अगर चट्टानें ग्रेनाइट जैसी कठोर होंगी तो उन्हें घिसने या जीर्ण शीर्ण होने में काफी लम्बा वक्त लगेगा। इसके विपरीत चट्टानें अगर चूना पत्थर जैसी नर्म या मुलायम होंगी तो वे बहुत कम समय में घिस जाएगी।
प्रश्न 7. अपक्षय का सबसे अधिक प्रभाव कौन सा है?
उत्तर : भूस्खलन और मिटटी का कटाव
प्रश्न 8. चट्टानों के टूटने को क्या कहते हैं?
उत्तर : अपक्षय या ऋतुक्षरण
प्रश्न 9. अपक्षय को प्रभावित करने वाले कारक कौन कौन से हैं?
उत्तर : जलवायु (तापमान और वर्षा), वनस्पति और पशु गतिविधियाँ, स्थलाकृतिक कारक (उच्चावच, कण आकार और चट्टान संरचना) एवं
समय
प्रश्न 10. पौधों द्वारा अपक्षय कैसे होता है?
उत्तर : पौधों की जड़े मिटटी के अंदर फैलकर चट्टानों में तनाव पैदा करती जिससे चट्टानों में विघटन होने लगता हैं। इसके अलावा पेड़ पौधे मिटटी के अंदर जैव एसिड और ह्यूमिड एसिड उत्पन्न करते हैं जिससे उनके आसपास की चट्टानों में रासायनिक अपक्षय की प्रक्रिया तेज होने लगती है।
अंत में,
आपने इस पोस्ट में अपक्षय के बारे में जाना कि अपक्षय किसे कहते है और उसके कितने प्रकार होते है एवं उनकी विशेषताएं क्या होती है? अगर ये जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे शेयर जरूर करे। और यदि आपके मन में कोई सवाल या सुझाव हो तो हमे कमेटं करके जरूर बताये।
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