प्यारे बच्चों! कैसे हैं आप सब लोग। आज हम आपके लिए कहानियों का पिटारा फिर से लेकर आये हैं जिसमें से आपको पंचतंत्र की कहानियां (Panchatantra Ki Kahaniya In Hindi) पढ़ने को मिलेगी। तो फिर देर किस बात की और पड़ते हैं Panchatantra Ki Kahaniya.
Panchatantra Ki Kahaniya In Hindi/ पंचतंत्र की कहानियां इन हिंदी:
संगठन में शक्ति
एक समय की बात हैं। एक जंगल में एक शिकारी शिकार करने के लिए आया। उसने पक्षियों को पकड़ने के लिए अपना जाल एक बड़े से पेड़ के नीचे लगाया और उसके ऊपर ज्वार के दाने बिखेर दिए।
कुछ देर बाद कबूतरों का एक झुण्ड उड़ते उड़ते वहां आया। वहां इतने सारे ज्वार के दानों को देखकर सबको बहुत ख़ुशी हुई। और देखते ही देखते कबूतर दाना चुगने लगे।
लेकिन उनमे से एक बूढ़े कबूतर को वहां कुछ गड़बड़ महसूस हुई। उसने खतरे को भांपते हुए सभी कबूतरों को समझाया कि कोई भी कबूतर वहां दाना न चुगे।
लेकिन किसी ने भी उस बड़े कबूतर की बात नहीं सुनी और देखते ही देखते सभी कबूतर शिकारी के जाल में फंस गए।
ये देखकर उस बड़े कबूतर ने सबको कहा कि मैंने तुम सभी को पहले ही कहा था लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं मानी।
तभी बूढ़े कबूतर ने एक उपाय सोचा और कहा कि अगर हम सबको अपनी जान बचानी हैं तो हमें इस जाल के साथ ही उड़ना होगा और यहाँ से जितना हो सके उतना दूर जाना होगा।
सभी ने उस बूढ़े कबूतर की बात मान ली और सब एक साथ जोर लगाकर उस जाल को साथ लेकर उड़ने लगे। और उड़ते उड़ते दूर एक खाली मैदान में उतरे।
वहां पर उस बूढ़े कबूतर का एक मित्र चूहा रहता था जिसका नाम चित्रग्रीव था। तभी बूढ़े कबूतर ने अपने मित्र चित्रग्रीव को आवाज लगायी।
थोड़ी देर में चित्रग्रीव वहां आ पहुंचा और झट से अपने पैने दाँतो से उस जाल को काट दिया और सबको आज़ाद करा दिया। इसके बाद सबने चित्रग्रीव का धन्यवाद किया।
कहानी से शिक्षा : संगठन में शक्ति होती हैं।
कछुआ और खरगोश की कहानी
किसी जंगल में एक कछुआ और खरगोश रहते थे। खरगोश को अपने तेज भागने पे बहुत घमंड था और वो कछुए की धीमी चाल में बहुत हँसता था और उसका मजाक उड़ाया करता था।
एक दिन मजाक मजाक में खरगोश ने कछुए से कहा ” क्यों कछुए भाई! क्या आज तुम मेरे साथ दौड़ करना चाहोगे?”
कछुए ने बिना सोच विचार किये तुरंत खरगोश की बात मान ली।
थोड़ी देर बाद दोनों में रेस शुरू हुई। और देखते ही देखते खरगोश लम्बी लम्बी छलांगे मारता हुआ बहुत दूर जा पहुंचा।
वहां पहुँचकर उसने पीछे मुड़कर कछुए को देखा तो कछुए का कोई आता पता नहीं था क्यूंकि कछुआ अपनी धीमी चाल से चल रहा था और वो बहुत पीछे छूट गया था।
ये देखकर खरगोश मन ही मन इतराया कि चलो अभी तो खरगोश को यहाँ तक आने में बहुत समय लगेगा तब तक मैं यहाँ थोड़ी देर आराम कर लेता हूँ।
ऐसा कहकर खरगोश एक झाड़ी की छाँव में बैठकर सुस्ताने लगा लेकिन उसे कब नींद आ गयी उसे पता ही नहीं चला।
इधर कछुआ अब भी लगातार अपनी धीमी रफ़्तार से लगातार चलता जा रहा था। थोड़ी ही देर में वह के नजदीक आ पहुँचा। खरगोश को गहरी नींद में सोता हुआ देखकर कछुआ चुपचाप वहाँ से आगे निकल पड़ा और धीरे धीरे अपनी मंजिल के करीब जा पहुंचा।
इधर काफी देर बाद अचानक ख़रगोश की नींद खुली तो उसने देखा कि कछुआ तो अपनी मंजिल तक पहुँचने ही वाला हैं। ये देखकर खरगोश ने एक बार फिर से तेजी से दौड़ना शुरू किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी क्यूंकि खरगोश मंजिल तक पहुँच गया था।
इस प्रकार कछुए ने अबकी बार रेस जीत ली और उसने खरगोश के घमंड को चूर चूर कर दिया था।
कहानी से शिक्षा : कभी भी अपने आप पर ज्यादा घमंड नहीं करना चाहिए क्यूंकि घमंड ज्यादा दिन नहीं टिकता।
शेर और चूहा
एक समय की बात हैं। एक बार जंगल का राजा शेर एक पेड़ के नीचे गहरी नीद में सो रहा था। तभी वहां पर एक छोटा सा चूहा आया और शेर के ऊपर उछलकूद करने लगा।
चूहे की उछलकूद से अचानक शेर की नींद खुली और क्रोध के मारे उसने चूहे को अपने पंजो में कैद कर लिया और उसे मुँह के पास लेजाकर खाने ही वाला था कि तभी चूहा बोला “मुझे माफ़ करना महाराज मुझसे गलती हो गयी। कृपया मुझे मत मारो और मुझे छोड़ दो। हो सकता हैं कि मैं किसी दिन आपके कोई काम आ सकूं।”
चूहे की बात सुनकर शेर थोड़ा हँसा और कहा ” ये चूहे एक तो तू इतना छोटा सा हैं और बाते बड़ी बड़ी करता हैं। तू क्या मेरे काम आएगा। लेकिन फिर भी मैं तुझे आज जिन्दा छोड़ रहा हूँ। और ये कहकर शेर ने चूहे की जान बख्श दी।
इसके कुछ दिनों बाद एक दिन शेर एक शिकारी के जाल में फंस गया। शेर जाल में से निकलने के लिए जितना ज्यादा कोशिश करता उतना ही ज्यादा फंसता जाता।
शेर अब जोर से दहाड़ने लगा। चूहे ने जब शेर की आवाज सुनी तो आवाज सुनकर चूहा शेर के पास दौड़ा दौड़ा आया और अपने पैने दाँतों से तुरंत ही जाल को काट दिया।
इस तरह चूहे ने शेर को जाल से मुक्त करवा लिया और शेर के अहसान का बदला भी चुका दिया।
शिक्षा : कभी किसी को अपने से कम मत समझो
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जैसे को तैसा
एक समय की बात है। एक लोमड़ी और एक सारस दोनों गहरे दोस्त थे। एक दिन लोमड़ी ने सारस को अपने घर दावत पर बुलाया।
सारस ने अपने दोस्त की बात मानकर दावत के लिए उसके घर गया। वहां पर लोमड़ी ने दोनों के लिए दावत का इंतजाम किया हुआ था।
तभी सारस ने देखा कि लोमड़ी ने उसके लिए एक प्लेट में खीर परोस रखी थी। और अपनी लम्बी चोंच होने के कारण सारस ठीक से खीर नहीं खा पा रहा था।
इधर लोमड़ी ने अपनी प्लेट में रखी हुई खीर झटपट खाकर ख़त्म कर दी और वो सारस की और देखने लगी। इस बात से सारस को बहुत शर्मिंदगी महसुस हुई और वो वहां से उठकर चला गया।
सारस अब लोमड़ी से अपनी इस बेइज्ज्ज़ती का बदला लेना चाहता था। अतः उसने भी कुछ दिनों बाद लोमड़ी को अपने घर दावत पर बुलाया।
लोमड़ी ख़ुशी ख़ुशी दावत खाने गयी। उस दिन सारस ने दोनों के लिए स्वादिष्ट खिचड़ी पकाई थी। अबकी बार सारस ने दोनों के लिए लम्बी सी सुराही में खाना परोसा था।
लोमड़ी ने जब ये देखा तो वो परेशान हो गयी और पतले मुँह वाली सुराही की वजह से कुछ भी नहीं खा पायी। इधर सारस खूब मजे से खिचड़ी खाने का आनंद ले रहा था। लोमड़ी चुपचाप सारस का मुँह देखती रही। अब वो समझ गयी थी कि उसे अपने किये का फल मिल रहा हैं। और थोड़ी ही देर बाद लोमड़ी चुपचाप वहां से निकल गयी।
कहानी से शिक्षा : जैसा व्यवहार तुम दूसरों के साथ करोगे दूसरे भी तुम्हारे साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे।
मुर्ख कछुआ
एक तालाब में एक कछुआ रहता था। उसी के नजदीक दो हंस भी रहते थे और वो वे दोनों हंस रोज पानी में तैरने आते थे। इस प्रकार कछुए और हंस तीनों में गहरी दोस्ती हो गयी।
एक बार गर्मियों के दिनों में तालाब का पानी सूखने लगा तो कछुए तो चिंता हुई कि अगर तालाब का पानी सुख गया तो उसका क्या होगा।
उसने अपने मन की बात दोनों हंसो को बताई तो दोनों हंस कहने लगे “तुम चिंता मत करो मित्र हमने तुम्हारे लिए इसका भी एक उपाय ढूंढ रखा है। यहाँ से कुछ दूर एक और इससे भी बड़ा तालाब है उसमें कभी भी पानी नहीं सूखता है। अगर तुम चाहो तो हम तुम्हें वहां ले जायेंगे।”
कछुए ने कहा अगर ऐसा है तो फिर देर किस बात की। मुझे आज ही वहां ले चलो
लेकिन तभी एक हंस बोला “मगर हम तुम्हें अपने साथ लेकर कैसे जायेंगे ?
थोड़ी देर सोच विचार करने के बाद दूसरा हंस बोला” मित्र कछुए! मैंने एक उपाय सोचा है कि अगर हम दोनों हंस एक लकड़ी को दोनों तरफ से पकड़ लेंगे और तुम उस लकड़ी को बीच में से अपने मुँह से पकड़ लेना। उसके बाद हम दोनों हंस तुम्हें उड़ाकर यहाँ से ले चलेंगे। बस तुम अपना मुँह मत खोलना फिर चाहे कुछ भी हो जाये।
तीनो मित्र इस बात के लिए सहमत हो जाते है। इसके बाद दोनों हंस एक मोटी लकड़ी को दोनों सिरों से पकड़ लेते है और कछुआ उस लकड़ी को बीच में से पकड़ लेता है। अब देखते ही देखते दोनों हंस कछुए को उड़ाकर ले जाने लगते है।
उड़ते उड़ते जब वे तीनों एक गांव के ऊपर से गुजर रहे थे तो उन्हें इस तरह उड़ता हुआ देखकर कुछ गांव वाले कहने लगे ” अरे देखो! वो दोनों हंस कैसे उस बेचारे कछुए को ले जा रहे है। लगता है वे दोनों उसे कछुए को मार डालेंगे।
गांव वालों की बातें सुनकर कछुए को रहा नहीं गया और उसने जोर से कहा “अरे मूर्खों हम तीनों अच्छे दोस्त है।” कछुए ने जैसे ही अपना मुँह खोला कछुआ धड़ाम से नीचे आ गिरा और गिरते ही उसकी मौत हो गई।
कछुए को इस तरह गिर जाने पर दोनों हंसों को बहुत दुःख हुआ। और एक बोला ” बेचारा कछुआ, अगर उसने अपना मुँह नहीं खोला होता तो उसकी जान बच जाती।
कहानी से शिक्षा : कभी कभी हमें अपना मुँह बंद रखना चाहिए और बेवजह नहीं बोलना चाहिए।
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