– रियल लाइफ हॉरर स्टोरी इन हिंदी –
यह कहानी विजय और रवि की है। दोनों जयपुर से है। और वे दोनों बचपन के बहुत अच्छे दोस्त भी थे। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद रवि एक ट्रेवल एजेंसी में जॉब करने लगा। और विजय ने उसके बाद कॉलेज छोड़ दिया था।
इस तरह कुछ सालों बाद अब उसने खुद की एक ट्रेवल एजेंसी भी शुरू ली थी।
धीरे धीरे रवि ने अपना कारोबार बहुत बड़ा कर लिया और एक बड़ी ट्रेवल कंपनी स्थापित कर ली।
अब रवि अपने काम में बहुत व्यस्त रहने लगा। अब उसे दिन भर क्लाइंट्स के फोन आते रहते और लम्बी लम्बी बातें होती।
धीरे-धीरे इसी तरह समय गुजरता गया।
एक दिन रात में खाना खाकर रवि टीवी के सामने बैठा ही था कि तभी उसके फोन की घंटी बजी।
फ़ोन उठाने पर उधर से कुछ जानी पहचानी आवाज़ आयी “हेलो, रवि! कैसे हो दोस्त? मैं विजय बोल रहा हूँ !”
विजय नाम सुनकर पहले तो रवि थोड़ा सोच में पड़ गया लेकिन अचानक रवि के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गयी और उसने कहा “हां हेलो, ….. विजय! मेरे बचपन के दोस्त! अरे, तुम किस दुनियाँ में रहते हो यार?
“पिछले पांच सालों से तुम्हारा कोई अता पता नहीं और न ही तुम्हारा कोई फ़ोन आया। तुम तो जैसे मुझे भूल ही गए यार ! आखिर इतने दिनों से कहा थे तुम?” – रवि ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा।
“कूल डाउन, कूल डाउन यार! तुम्हारी शिकायतें जायज़ है। मेरे दोस्त, अभी मैं अमेरिका में हूँ और अलगे हफ्ते ही इंडिया आ रहा हूँ और जयपुर आकर तुमसे मिलता हूँ। बाकि बातें हम वहीं करेंगे, ओके!
रवि – हाँ, जरूर, ओके बाय ! (और उधर से फ़ोन कट गया)
इतने दिनों बाद अपने पुराने दोस्त से बात करके रवि को काफी अच्छा लग रहा था। उसे भी जैसे विजय के आने का ही इंतजार था।
विजय के बारे में सोचते सोचते रवि बचपन की यादों में जा पहुँचा।
बचपन में विजय कितनी शैतानियां करता था? सारा स्कूल उसकी हरकतों से वाकिफ था। और छुपन छुपाई खेलते वक़्त तो वो ना जाने कहाँ जाकर छुपता था कोई पता भी नहीं लगा पाता था।
साइंस उसका सबसे प्रिय विषय था। उसे हर चीज के बारे में गहराई से जानने का शौक था। उसे अपने जमाने का सी आई डी कहे तो कोई ताजुब्ब की बात नहीं होगी।
और कहानियाँ! कहानियाँ तो बहुत पसंद थी उसे। ……
सोचते सोचते रवि की कब आँख लग गयी उसे पता ही नहीं चला।
कुछ दिन गुजरने के बाद ….
एक दिन फिर से विजय का फ़ोन आता है – “हेलो माई डिअर! कैसे हो?
रवि – हाँ! यार, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा हूँ। तो फिर कब आ रहे हो इंडिया ?
विजय – मेरे दोस्त, मैं आज ही यहाँ से रवाना हो रहा हूँ । मेरी आज रात की फ्लाइट है और मैं कल मॉर्निंग 5 बजे तक जयपुर पहुँच जाऊंगा। ओके ….!
और फ़ोन कट जाता है।
अगले दिन रवि सुबह जल्दी तैयार होकर अपनी कार लेकर एयरपोर्ट पहुँच जाता है।
थोड़ी देर बाद एयरपोर्ट पर जब दोनों की मुलाकात होती है तो दोनों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा।
दोनों एक दूसरे के गले मिले। बहुत सालों बाद अपने पुराने दोस्त से मिलकर दोनों बहुत खुश थे।
दोनों गाड़ी में बैठे और रास्ते में दोनों की बातचीत शुरू हुई –
रवि – “यार… विजय! पहले तो तुम ये बताओ कि अमेरिका जाकर अपने दोस्त को भूल कैसे गए। जो पांच साल से एक फ़ोन भी नहीं किया तुमने ?”
विजय – “ये थोड़ी लम्बी स्टोरी है मेरे दोस्त, इसके बारे में फिर किसी दिन बात करेंगे।” और तुम बताओ मित्र अभी क्या चल रहा है तुम्हारा?”
रवि – “मैं तो उसी पुराने टूर एंड ट्रेवल एजेंसी का काम करता हूँ मित्र। बस उसी में चल रहा है मेरा काम धाम।
और तुम अपने बारे में बताओ यार, अमेरिका में क्या करते हो अभी?”
विजय – “मेरा काम थोड़ा अलग लेवल का है मित्र। मैं रिसर्च का काम करता हूँ।”
रवि – ” रिसर्च, किस प्रकार का रिसर्च?”
विजय – पेरानॉर्मल एक्टिविटी पर। अर्थात भूतों पर रिसर्च!
भूतों पर रिसर्च! ये कैसी रिसर्च है यार? (रवि ने चौंकते हुए कहा)
विजय – मेरे दोस्त, क्या तुम भूतों और आत्माओं में विश्वाश करते हो??
रवि – नहीं!
विजय – तो यानि तुम्हारे हिसाब से भूत प्रेत जैसी कोई चीज नहीं होती। है न ?
रवि – हां शायद।
विजय – फिर तो तुम्हे भूतो से डर भी नहीं लगता होगा !
रवि – नहीं ऐसा नहीं है, लेकिन तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो?
बस यूँ ही ! (विजय मुस्कुराते हुए बोला)
थोड़ी ही देर में दोनों घर पहुंच जाते है। और चाय नाश्ता करने के बाद एक बार फिर से दोनों की बातचीत शुरू हो जाती है।
विजय – “वैसे मैं तुम्हें एक बात बताना तो भूल ही गया यार”
कौनसी बात? (रवि ने आश्चर्य से पूछा।)
विजय – दरअसल बात ये है दोस्त, कि मैं अमेरिका में जिस कंपनी में काम करता हूँ उसमें पेरानॉर्मल एक्टिविटीज यानि भूतों पर शोध किया जाता है और फिर उसे दुनियाभर की शोध पत्रिकाओं में पब्लिश किया जाता है। वैसे मैं अमेरिका में पेरानॉर्मल सोसाइटी का सदस्य भी हूँ।
और इसलिए मेरी कंपनी ने मुझे इंडिया में इसी तरह की रिसर्च करने के लिए भेजा है। मैं कल आमेर के किले में अकेले ही एक रात गुजारना चाहता हूँ। ताकि मैं जान सकू कि वहां रात में क्या क्या होता है और किस तरह का अहसास होता है।
क्या ….? तुम ये क्या कह रहे हो, तुम होश में तो हो? तुम आमेर के किले में एक रात बिताना चाहते हो और वो भी बिल्कुल अकेले (रवि ने आश्चर्यचकित होकर बोला)
विजय – मैं अकेला नहीं जा रहा हूँ दोस्त! ये देखो, मैं अपने साथ कितनी गजब की चीजे लाया हूँ। (रवि ने अपने बैग में से कुछ उपकरणों को नकालकर दिखाते हुए कहा)
ये देखो – फ्लेश लाइट, डिजिटल ऑडियो रिकॉर्डर, नाईट विज़न थर्मल कैमरा, ईएम्ऍफ़ गेज (इलेक्ट्रॉमैग्नेटिक फील्ड गेज), डिजिटल थर्मामीटर।
रवि – ये सब चीजे तुम्हारे क्या काम आती है?
विजय – बताता हूँ। देखो मित्र! भूत जो होते है वो एक तरह की एनर्जी होती है यानि नेगेटिव एनर्जी। वो हमें दिखाई नहीं देती है। और इस प्रकार की नेगेटिव एनर्जी को हम मशीनों से डिटेक्ट कर सकते है।
यानि जहाँ भी इस तरह की एनर्जी होगी वो कोई न कोई संकेत जरूर देगी। और जैसा कि तुम जानते ही हो कि पुराने खंडहर और किले जैसी जगहें कितने सालों से वीरान पड़ी हुई है। और घोस्ट हंटिंग की लिए हम जैसे घोस्ट हंटर ऐसी ही जगह को चुनते है।
अच्छा, मैं तुम्हें इनके बारे में तो बताना ही भूल गया।
देखो ये फ़्लैश लाइट। ये घुप अँधेरे में भी तेज लाइट देती है। और इससे दूर की कोई चीज मैं आसानी से देख सकता हूँ।
और इसे देखो, डिजिटल ऑडियो रिकॉर्डर। इससे इलेक्ट्रॉनिक वॉयस फेनोमेना (ईवीपी) के रूप में जानी जाने वाली चीज़ों को रिकॉर्ड करने में मदद मिलेगी। इससे हम आत्माओं से बातें भी कर सकते है।
और ये है नाईट विज़न थर्मल कैमरा। यह अपने सेंसर से उत्सर्जित इंफ्रारेड किरणों का पता लगाता है जिससे ये घुप अँधेरे में भी वीडियो रिकॉर्ड कर सकता है।
और ये देखो ईएम्ऍफ़ गेज यानि इलेक्ट्रॉमैग्नेटिक फील्ड गेज़। ये बहुत ही काम की चीज है मेरे लिए। विद्युत् चुंबकीय क्षेत्र में उतार-चढ़ाव का पता लगाने के लिए इसकी आवश्यकता होगी जो भूतिया प्रेत के कारण हो सकता है।
मेरे कहने का मतलब है कि ये वो उपकरण है जो किसी जगह पर भूतों के होने का संकेत देता है। आत्माओं में जो नेगेटिव एनर्जी होती है यह अपने आसपास एक तरह का इलेक्ट्रॉमैग्नेटिक फील्ड बनाती है। और उन्ही इलेक्ट्रॉमैग्नेटिक फील्ड को ये मशीन पकड़ लेती है और स्क्रीन पर कुछ संकेत देने लगती है।
और ये रही पिस्टल। इसका निशाना अचूक है। इसके आगे कोई टिक सकता है क्या मेरे दोस्त। किसी भी खतरे की स्थिति में ये हमेशा मेरे साथ ही रहती है।
अब तुम बताओ कि क्या मैं वहां अकेले एक रात गुजार सकता हूँ या नहीं?
रवि – नहीं, बिल्कुल नहीं! मैं तुम्हें वहां रात में अकेले जाने की इजाजत नहीं दे सकता।
विजय – मगर क्यों?
रवि – क्यूंकि वो जगह दिन में आबाद और रात में बहुत सुनसान रहती है।
विजय – लेकिन तुम्हें तो भूतों में विश्वाश नहीं है न ? तो फिर इतना डर क्यों?
रवि – नहीं यार बस ऐसे ही। मैं नहीं चाहता कि उन खंडहरों में तुम पुरी रात बिताओ।
विजय – ओह कम ऑन यार! आखिर तुम्हें किस बात का डर है?
विजय की ज़िद के आगे रवि ज्यादा कुछ बोल नहीं सका। आखिर विजय उसके बचपन का दोस्त था। और वो नहीं चाहता था कि उसका दोस्त उस किले में अकेला रात बिताये।
वैसे तो रवि भूत प्रेतों में विश्वाश नहीं करता था लेकिन फिर भी एक अजीब सा डर उसे परेशान कर रहा था। उसने उस किले के बारे में कई सारी कहानियां लोगों से सुन रखी थी कि वो जगह भारत की मोस्ट हॉन्टेड जगहों में से एक है और वहां रात में कोई भी अकेले नहीं जाता। और जो कोई भी रात में उस जगह गया वो फिर लौटकर नहीं आया।
इधर विजय अपनी जिद पर अड़ा हुआ था और वो कह रहा था कि वो आज शाम को ही उस किले में जायेगा। वह रवि को बार बार ये विश्वाश दिलाने की कोशिश कर रहा था कि वो बेवजह परेशान हो रहा है और उसे कुछ नहीं होगा। वह अपना काम पूरा करके सही सलामत वापस लौट आएगा।
काफी जिद करने के बाद रवि भी मान गया। उसने विजय से कहा – “ठीक है दोस्त, अगर तुम्हारी ये ही जिद है तो शाम को तुम्हें छोड़ने मैं भी साथ में चलूँगा।
विजय को इस बात से बहुत ख़ुशी हुई।
शाम होने पर दोनों दोस्त किले की और निकल पड़ते है।
वहाँ पहुंचकर दोनों एक चाय की टपरी पर रुकते है। आमेर का किला ठीक उनके सामने ही था। एक बार रवि फिर भारी मन से अपने दोस्त को समझाने लगता है कि वो ये पागलपन वाली ज़िद छोड़ दे और वापस उसके साथ चले।
लेकिन विजय ने रवि को भरोसा दिलाते हुए कहा – अरे यार रवि! मैं पहले भी ऐसी कई जगहों पर अकेला जा चुका हूँ। इसलिए तू किसी भी बात की टेंशन लेना छोड़ दे। मुझे कुछ नहीं होगा मैं सही सलामत वापस आ जाऊंगा।
ये मेरा वादा है सुबह की पहली किरण के साथ मैं यहाँ तेरे सामने हाजिर हो जाऊंगा। तो ठीक है हम दोनों कल सुबह इसी जगह वापस मिलते है।
इधर चाय वाला भी उन दोनों की बातों को ध्यान से सुन रहा था। उसने कहा – साहब ये जगह वाकई में बहुत डरावनी है। और यहाँ पर कई घटनाएं हो चुकी है। और एक आप हो कि रात में अकेले ही रुकना चाहते हो। मेरी मानो तो वापस लौट जाओ साहब!
रवि बोला – हां यार विजय ये सही कह रहा है। तुम्हें मेरे साथ वापस घर चलना चाहिए।
विजय – अरे यार! तुम भी न हर किसी की बातो में आ जाते हो। ऐसा कुछ भी नहीं होता है। चलो मुझे अब देर हो रही है और मुझे बहुत सारा काम भी करना है। ओके बाय गुड नाईट। चलता हूँ।
गुड नाइट – भारी मन के साथ रवि बोला।
घर जाने के बाद रवि अपने दोस्त के बारे में ही सोचता रहा और पूरी रात सो नहीं पाया। उसे तो बस जैसे सुबह होने का ही इन्तजार था।
सुबह के पाँच बजते ही घडी का अलार्म बज उठा। रवि अब जल्दी से कपड़े पहनकर घर से निकल पड़ा। और उसी चाय वाले की दुकान पर जा पहुंचा।
उसकी नजरे अब किले के दरवाजे की और टिक गयी।
तभी चाय वाले ने एक कप रवि को सौंपते हुए कहा – जय राम जी की, साहब!
जय राम जी की, भैया।
क्या हुआ साहब आपका दोस्त अभी तक लौटा नहीं? और सुबह भी होने वाली है।
रवि – हां उसने कहा था कि वो अपना काम करके सुबह जल्दी ही लौट आएगा। हो सकता है कि अब भी उसका कुछ काम बाकि हो।
जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था रवि की धड़कने भी बढ़ती जा रही थी।
वो बार बार किले के दरवाजे की ओर टकटकी लगाकर देखता रहा।
उजाला होने में बस कुछ ही समय बाकि था। तभी किले के दरवाजे की ओर दूर से कोई व्यक्ति आता दिखाई दिया। थोड़ी देर देखने के बाद रवि ख़ुशी से झूम उठा। क्यूंकि वो व्यक्ति उसका दोस्त विजय ही था।
उसने दूर से ही हाथ हिलाया और जोर से हाय कहा।
पास आने पर रवि ने अपने दोस्त को गले लगा लिया। और चौंकते हुए पुछा – अरे यार तुम इतने ठंडे क्यों हो मेरे दोस्त?
विजय – अरे भाई रात में ठंड बहुत थी वहां। इसलिए पूरी रात ठण्ड में ही गुजारनी पड़ी।
अच्छा और बताओ तुम्हारे काम का क्या हुआ। भूतों पर रिसर्च पूरी हुई या नहीं? (रवि ने हँसते हुए पुछा)
विजय – हां बिल्कुल अच्छे से पूरी हो गयी है मेरी रिसर्च। मैंने सबकुछ अच्छे से अपने कैमरे में कैद कर लिया है। आओ मेरे साथ अंदर चलो मैं तुम्हें सबकुछ विस्तार से बताता हूँ।
और दोनों साथ में किले के अंदर जाने लगते हैं।
अंदर जाने के बाद विजय बोला – दोस्त ये किला वास्तव में बहुत शानदार है। यहाँ वो सबकुछ है जो मैं देखना चाहता था। मैंने कल रात पूरा किला घूम कर देखा है। मैंने ऐसा किला कही नहीं देखा। सच में बहुत खूबसूरत जगह है ये।
थोड़ा आगे चलने पर रवि बोला – अरे लेकिन तुम्हारा सामान कहा है, दोस्त ! तुम तो खाली हाथ ही हो?
विजय – अरे वो। वो तो मैं अंदर ही भूल आया। आओ मेरे साथ हम वहीं चलते है।
दोनों दोस्त आगे की ओर बढ़ने लगते है।
आगे चलने पर विजय ने कहा – वो देखो रवि! रानियों का बाग़। वहाँ महल की रानियाँ घूमने आया करती थी। और उसके ऊपर वो झरोखे है न वहां से रानियाँ बगीचे में देखा करती थी।
इसके बाद दोनों तहखाने की और बढ़ने लगते है।
वहां बहुत ज्यादा अँधेरा था। जैसे ही वे आगे बढ़े, अचानक रवि का पैर लड़खड़ाया और वो धूल में जा गिरा।
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रवि ने थोड़ा संभलते हुए कहा – यार विजय, ये हम कहाँ आ गए? देखो यहाँ तो घुटनों तक धूल ही धूल है। ऐसा लगता है कई सालों से यहाँ कोई भी नहीं आया होगा।
विजय – हां यार मुझे भी ऐसा ही लगता है।
अँधेरे में थोड़ा सा आगे बढ़ने पर विजय बोला – दोस्त क्या तुम्हें पता है। ये जो जगह अभी हम देख रहे है न रात में यहाँ का वातावरण बिल्कुल ही बदल जाता है।
अच्छा वो कैसे? (रवि ने पुछा)
विजय – क्यूंकि कल रात मैं इसी जगह आया था। और यहाँ पर चारों और संगीतमय माहौल था। पूरी की पूरी महफ़िल सजी हुई थी। यहाँ सुरीले वाद्य यंत्र बजाये जा रहे थे और सुंदर सुंदर नर्तकियां नृत्य कर रही थी।
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तभी उसने रवि के पीछे आकर बोला – और वो देखो सामने छत की ओर कोने मैं एक लोहे का बड़ा सा कड़ा लटका हुआ है न।
हाँ।
तो जब यहाँ संगीत कार्यक्रम चल रहा था तभी अचानक उस कड़े में से एक तेज़ चमकदार रौशनी निकली। और ……………..
और फिर ……….? (रवि बोला)
अचानक विजय की आवाज आनी बंद हो गयी।
फिर क्या हुआ था दोस्त? (रवि ने फिर कहा)
फिर से कोई आवाज नहीं।
अरे यार तुम बोलते क्यों नहीं? बताओ तो आगे क्या हुआ?
ऐसा कहकर जैसे ही रवि पीछे की और मुड़ने लगा तभी अचानक वो किसी भारी चीज से टकराया और नीचे जमीन पर गिर पड़ा।
अंधेरे के कारण उसे कुछ स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था।
वो विजय विजय करने लगा और उसने जब इधर उधर हाथ घुमाया तो उसके हाथ में विजय की टॉर्च आ गयी।
उसने टॉर्च जलाई तो उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी। दरअसल जिस चीज से वो टकराया था वो एक लाश थी। और वो लाश उसके दोस्त विजय की ही थी।
अचानक हुई इस घटना से रवि बहुत बुरी तरह घबरा गया कि पल भर में ये कैसे हो गया। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि अभी थोड़ी देर पहले ही तो उसका दोस्त उससे बातें कर रहा था। फिर अचानक ये क्या हो गया?
फिर भी डर के कारण वह जोर जोर से विजय को हिलाने लगा और बार-बार विजय विजय चिल्लाने लगा।
उसने विजय को छुवा तो उसे महसूस हुआ कि लाश बहुत ही ज्यादा ठंडी पड़ी हुई थी।
ये देखकर रवि सारा माजरा समझ गया। कि आखिर यहाँ हुआ क्या था।
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दरअसल रवि को ये बात समझ आ गयी थी कि वो लाश लगभग 10 घंटे से ऐसे ही पड़ी हुई है। जिसके कारण वो ठंडी पड़ चुकी है।
तो इसका मतलब विजय की मौत कल रात को ही हो चुकी थी।
रवि ने टॉर्च से आसपास देखा तो विजय का सारा सामान भी उसके आसपास ही बिखरा हुआ पड़ा था।
अचानक रवि की धड़कने बढ़ने लगी और वो चिल्लाते हुए वहां से भाग गया और किले से बाहर आ गया।
इसके बाद उसने पुलिस को सारी बात बताई। जाँच के लिए किले में पुलिस की टीम भेजी गयी और विजय का सारा सामान बाहर निकाला गया।
उसके बाद पुलिस ने कैमरा चेक किया तो उसमें कुछ फोटो तो थे मगर साफ़ दिखाई नहीं दे रहे थे। बाद में एक छोटी सी वीडियो भी मिली जिसमें कुछ पुराने ज़माने की सितार बजने जैसी आवाज आ रही थी। और वीडियो के अंत में विजय के चीखने की आवाज भी रिकॉर्ड हुई थी।
इस बात को जानकर रवि गहरी सोच में पड़ गया कि आखिर वो कौन था जो सुबह उसे किले के बाहर आकर मिला था और उसे उस तहखाने तक लेकर गया था?
लेकिन वो जो कोई भी था मुझे ये यह बताना चाह रहा था कि हम इंसानों की तरह उनकी भी एक अलग दुनियाँ है। और उन्हें अपने इलाके में किसी की भी मौजूदगी बरदाश्त नहीं होती।
इस घटना के बाद से रवि की सोच बिल्कुल बदल चुकी थी। अब वो मानने लगा था कि भूत प्रेत और आत्माएं भी होती है और वो अपने आपको किसी भी रूप में बदल सकती है। फिर चाहे हम माने या न माने।
और आखिर में
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